इस कविता को लिखा है मयंक सिंह सेंगर ने जो की Delhi University के Deshbandhu College से अपनी ग्रेजुएशन की पढाई कर रहे है | यह कविता इस लिए भी थोड़ी अलग है क्योंकि इस कविता को यूनिवर्सिटी level पे नेशनल अवार्ड भी मिल चूका है | जो की Delhi University में आयोजित कराई गयी थी | इस कविता को लिखने का पूरा श्रेय मयंक सिंह सेंगर को ही जाता है | यहाँ तक की उनकी इस कविता को यूनिवर्सिटी की पत्रिका में छापने के लिए भी चुना जा चूका है | फिलहाल यह कविता अभी किसी भी social networking साईट पे प्रकाशित नहीं है| यह पहली बार है की यह कविता इन्टरनेट पे अपलोड होने जा रही है |
इस कविता को लिखा है मयंक सिंह सेंगर ने जो की Delhi University के Deshbandhu College से अपनी ग्रेजुएशन की पढाई कर रहे है | यह कविता इस लिए भी थोड़ी अलग है क्योंकि इस कविता को यूनिवर्सिटी level पे नेशनल अवार्ड भी मिल चूका है | जो की Delhi University में आयोजित कराई गयी थी | इस कविता को लिखने का पूरा श्रेय मयंक सिंह सेंगर को ही जाता है | यहाँ तक की उनकी इस कविता को यूनिवर्सिटी की पत्रिका में छापने के लिए भी चुना जा चूका है | फिलहाल यह कविता अभी किसी भी social networking साईट पे प्रकाशित नहीं है| यह पहली बार है की यह कविता इन्टरनेट पे अपलोड होने जा रही है |
कविता की पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार है -------------------
कोई दोष नहीं देना है किसी को, साबित भी कुछ नहीं करना है,
बस जो महसूस करा है आज तक मेने, लाब्जो में बया सब करना है |
सपनो का वो आंगन कहाँ ? होती थी जिसमें एक गौरिया छोटी सी,
एक आंगन जिसमें एक नीम का पेड़ छाया देता था ठंडी ठंडी |
वो बचपन में कितना मासूम हुआ करते थे सब,
लगायेंगे रोज एक पेड़ यह कभी कभी सोचा करते थे सब |
क्यूँ नहीं छुते पेड़ो को रात में ? यह सोच कर कितना हेरान हुआ करते थे.
जुगनू को देख रातों में उसके पीछे भागा करते थे |
आज इस भगदड़ में कही न कही मै खुद भी इससे दूर हो गया हुँ,,
पंछियों को देख पेड़ो पर खुश तो होता हुँ ,
माली को देख बागों में भाभुक तोह होता हुँ ,
नदियों को देख कभी कभी मन तो करता है उनमें बहने को,
पहाड़ो को देख रास्तो में जी तो करता है आसमान छुने को |
लेकिन फिर जब आता हुँँ अपनी दुनिया में वापिस,
तो लगता है फिर वही, कि सपनो का वो आंगन कहाँ ?
होता था जिसमें मै अपने ही खयालो में खोया हुआ ,
ख्याल ...हाँ ख्याल है मेरे कि .....
इंद्रा धनुष के सातों रंगों को अपनी मुट्ठी में करलू,
आंखे बंद करके भी इनको महसूस करलू |
उस चीटी से कुछ सिखु, जो बार बार,
गिरने के बाद भी ऊपर चड़ना ही जानती है |
और..... उस हवा को इतने करीब से महसूस करू,
जो बस सुलाना ही जानती हो,की मै फिर सो जाऊ अपने सपनो के आंगन में
और फिर जब उठू तो पुछु खुद से इस बार के सपनो का वो आंगन कहाँ?
होता था जिसमें मै अपने ही खयालो में खोया हुआ था |
ख्याल.... ख्याल है मेरा की आज इस कलम से रिश्ता जोडू,
क्योंकि..... ख्याल और कलम का एक अजीब ही रिश्ता होता है पुराना सा |
अगर एक बार कोई भी चलाना शुरू कर दे,
तो किसी को भी रोक पाना मुश्किल सा लगता है |
ये कलम की खूबियाँ, अगर कोई समझ जाये तो,
समझो उसने सारा जहान पा लिया |
चित्रकार के हाथ में आ जाये तो, उसके खयालो को छाप देती है,
और किसी लेखक के हाथ में आ जाये तो, उसके एहसासों को उतार देती है |
मेने बहुत करीब से महसूस करी है एहमियत इस कलम की,
इसलिए अब बस इसके ही सहारे, सारे जहान को अपने एहसासों में उतारने की हिम्मत रखता हुँ |
बंद करता हुँ लिखना एस उम्मीद से की, अब जब दुबारा बेठु लिखने तो,
एस बार अपने सपनो के आंगन में नहीं, हमारे सपनो के आंगन में बेठु |
और फिर जब उठू सोकर अगली बार, तो पूंछु खुद से एस बार कि,
सपने का वो आंगन कहाँ? होते थे जिसमें हम अपने ही खयालो में खोये हुए ||.......
धन्यवाद् ,........
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